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Tuesday 27 March 2012

अजब तमाशा प्रकृति का

कितना सुंदर
कितना प्यारा
इस जगती का
रूप है न्यारा...
तोता बोले
हरियाली घोले
लाल चोंच में
सुर्खी डोले.

गौरैया का जोड़ा देखो
कैसे रखवाली करे
नीड  की.
कभी पंख समेटे
उड़े जहाज सी
कभी खीज दिखाए.

कबूतर गुटर-गू, गुटर गू
में लगा.
ख़त पैगाम ले
जाने की आस में जुटा
छत की मुंडेर में बैठा
अंडे की रखवाली करता

कौवा रावन
उड़ा चला आया
झपटा मारा नीड़ बिखेरा
कबूतर के पंख उखाड़ा
लहू लुहान किया
जब उसको
तब जाकर अंडे खा पाया.

अजब गजब प्रकृति का रूप
कौन नहीं?
जो इससे है दूर...
आँखें देख थकी नहीं
खोया सब संसार.

जगती की विकट माया में
भूला मैं घर बार
नाचे ताक धिना धिन धीन
ईश का है
रचना संसार.

गिलहरी भी सरपट भागे
धमाचौकड़ी में है आगे
सबको वह चौकाए
छकाये धूम मचाये
अपने में मशगूल
झरनों का शोर गुल
पहाड़ों का श्याम रूप
हरियाली की सुन्दरता
हवा की नमी
आँखों की ठंडकता
क्या रही खूब
जो देखा मैंने रूप.
जो देखा मैंने रूप.

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